शुक्रवार, 7 अगस्त 2020

देश का जो पेट भरता उसका है टूटा बसेरा


गीत  (किसान )  


रात मे भी दिनों में भी जिसका है खेतों पे डेरा ।

देश का जो पेट भरता उसका है  टूटा बसेरा ।


दोपहर की धूप वह कब देखता है ।

हर घड़ी हर पहर वह बस रेंगता है ।

हैं बहुत शोले भी उसकी जिंदगी मे ।

पर उन्ही शोलो से खुद को सेंकता है ।

प्रेम करता है बहुत अपनी फसल से ।

है वहीं फसलों से उसका सात फेरा।

देश का जो पेट भरता ....................


उसकी खातिर झोपड़ी ही तो महल है ।

छांव देना हो किसीको तो प्रबल है ।

भूख से कोई यहां यदि मर रहा हो।

दे उसे भोजन वो इतना तो सबल है ।

द्वार से उसके कोई भूंखा न जाए ।

रात हो या दिन हो या फिर हो सबेरा ।

देश का जो पेट भरता ...........


ना किसी में उसके प्रति करुणा भरी है ।

वक्त की हर जंग उसने खुद लड़ी है ।

वक्त कैसा भी हो उसको मस्त जीना ।

उसकी अपनी तो यही जादूगरी है ।

है शिकायत भी नही उसको किसी से ।

घर में उसके हो उजाला  या अंधेरा ।

देश का.... . . . . . . . . . . . . . . . . 


हार करके वह स्वयं को जीत देता।

संस्कृतियों को सुहानी रीत देता । 

लाल(पुत्र) अपना दान कर देता धरा को।

वह धरा को वीरता के गीत देता।

पर नजर इस पर नही है अब किसी की।

ज़िंदगी में है धुआं काला घनेरा

देश का जो पेट भरता .......................


👉@संदीप कुशवाहा, सतना  


"किताबें"

 "किताबें"


ये किताबें मेरी मां जैसी हैं

जो मुझे बोलना सिखाती हैं

ये मुझे इस दुनिया की तरह 

कभी पराया नहीं करती 

ये हमेशा मुझे अपना बना के

रखती हैं

ये मुझे जीवन की सच्चाइयों से 

रूबरू कराती हैं

जब भी  मैं व्याकुल होता हूँ 

इन किताबों से बातें करता  हूँ 

जब भी मैं इन्हे अपने सीने पे

रखकर इन्हे निहारता हूं

ये मेरी व्याकुलता को दूर कर

मेरी पीठ थपथपाती हैं

और मैं गहरी नींद में सो  जाता हूँ 

ये किताबें मेरी  मां जैसी हैं

जो मुझे हंसना सिखाती हैं

ये मुझे लिखना भी सिखाती हैं

साथ ही साथ ये बातें करना तो सिखाती  ही हैं

लेकिन ये मौन रहना भी सिखाती हैं

ये मुझे कठिन राहों मे चलना और

स्वयं मे व्याप्त बुराईयों से लड़ना सिखाती हैं

ये किताबें मेरी  मां जैसी हैं

जो मुझे जगाती हैं और जगाना 

सिखाती हैं

              👉@संदीप कुशवाहा, सतना  


मंगलवार, 4 अगस्त 2020

संदीप कुशवाहा की गज़लें............


                        ------: गज़लें :------


(1)

जो भी मौसम मेरे पास आता रहा ।
गीत लिखकर उसे गुनगुनाता रहा ।।

जो समझदार था मुझको समझा नहीं।
जो था नादान अपना बनाता रहा ।।

हर परिंदा ये चाहे वो घर में रहे।
मौसमों का ख़लल उसपे आता रहा।।

गौर मैंने किया ही नहीं यार पर।
वो मुझे हर घड़ी आजमाता रहा।।

नींद आई नहीं जब मुझे रात भर।
जागकर नींद को मै सुलाता रहा।।

 👉@संदीप कुशवाहा, सतना 

(2).......

जहां कम है मेरा जाना न जिनके पास होता हूं।
 उन्हीं की महफिलों में मैं उठी इक बात होता हूं।

खफा होते रहो मुझसे मुझे आदत है अब इसकी, 
मोहब्बत से कोई बोले तो मैं हैरान होता हूं।

मेरी मुश्किल मे हैं वो साथ, है उनकी मेहरबानी, 
मै जब मुश्किल मे होता हूं तो खुद के साथ होता हूं।

वो हम को जानते तो हैं मगर अनजान रहते हैं ,
मै जबकी हर बखत उनको जुबानी याद होता हूं।

जहां उनको बताना चाहिए था नाम मेंरा भी, 
 न जाने फिर भला क्यूं मैं वहां गुमनाम होता हूं।
 
करी कोशिश जो अब हमने बड़ा पाने की चाहत में ,
 वो पाना लाज़मी तो है जरा गुमराह होता हूं।

 मेरा जो आशियाना है जरा छोटा सा है साहब ,
मगर उस आशियाने का मै शाही शाह होता हूं।

                 👉@संदीप कुशवाहा, सतना 
    

(3)......

अच्छा लगता है कोई तो कहना पड़ता है ।
कुछ दिन फिर उसकी गलियों में चलना पड़ता है ।

यूं हीं कुछ हांसिल हो जाना किस्मत है वरना,
कुछ करने की खातिर कुछ तो करना पड़ता है।

माना की सूरज हो, तो फिर चमकोगे लेकिन 
उगते सूरज को भी इक पल ढ़लना पड़ता है ।

मज़लूमों को रोने से कुछ हांसिल ना होगा, 
जुल्मों से अब लड़ना सीखो लड़ना पड़ता है ।

पूंछे जब माँ हालत मेरी कैसा है? तू तब, 
अच्छा हूँ माँ अच्छा हूँ ये कहना पड़ता है ।

क्यूं? खुश होगा बंजारा इस मुश्किल जीवन से, 
सड़कों पर रहना कब अच्छा, रहना पड़ता है ।

क्या? होगा इस दुनिया का अब तो डरता हूं मैं,
 मां को ही बच्चों से अपने डरना पड़ता है।

झूठी बातें बिकती हैं अब महफिल में लेकिन, 
शायर हो सच कहना सीखो कहना पड़ता है ।
 👉@संदीप कुशवाहा, सतना 

(4).......

है चाहतों का क्या शिल-शिला ये, हमें जरा भी खबर नहीं है ।
तु एक पल भी जुदा न होना, हमे जरा भी सबर नहीं है ।

कोई जो सोचे हमीं हैं सब कुछ, तो जान ले वो नहीं है मुमकिन।
यही रखोगे जो तुम  नजरिया, तो फिर ये साहब नजर नहीं है ।

हैं लोग कितने भी इस जहां में, जो चाहते ही नहीं हैं हमको ।
करें बगावत वो पीठ पीछे, हमें जरा भी असर नहीं है।

जो चंद शोहरत की ख्वाहिशो में, जहां न करना हो करते सजदा।
जमीर मेरा मुझे पुकारे, कि तुझमे ऐसा हुनर नहीं है ।

थका हुआ हो कोई मुसाफिर, पनाह देता है ये खुशी से।
जो छांव देता है भेद करके, ये कोई ऐसा शजर नहीं है ।

कोई तेरी गर कमी बताए,तो यार उसपे तू गौर करले ।
जरा-सी बातों मे ही खफा हो, ये कोई ऐसा जिगर नहीं है ।

कोई कहे की थे इश्क में तुम, इसी  लिए तो हुए हो शायर।
कोई बता दो रे इस जहां को, ये इश्क वाला सफर नहीं है ।
                 👉@संदीप कुशवाहा, सतना (मध्यप्रदेश )

(5).....



खुद कि खुद से हुई गर मुलाकात है,
तब ये समझो की बस ये करामात है।

फर्ज अपने अदा करता रहता हूं मैं,
क्या खबर कब तलक जिन्दगी साथ है ।

जिन्दगी में मिले जो भी दिन रैन हैं,
उनको जीना पड़ेगा ये सच बात है ।

हँस रहा है बहुत वो हमें देखकर ,
क्या करे वो यही उसकी औकात है ।

दर्द पीता रहा  बस यही सोच कर, 
दी हुई जिन्दगी की ये सौगात है ।
           
👉@संदीप कुशवाहा 

(6)..........

अब  यहां पर वक्त  ऐसा  चल रहा है ।
आदमी  ही  आदमी  से  डर रहा है ।

गांव  में साधन की कमिंयां कहने  वाला ।
गांव की ही गोद में  आ पल रहा  है ।

है सहारा देश अपना अपनी माटी ।
तू विदेशो की तरफ क्यों ढल रहा है ।

भ्रम मे है  गर तू की  तुझसा है  ना कोई ।
खुद को खुद से ही यहां तू छल रहा है ।

है कमी  तुझमें तू ये स्वीकार कर ले।
वक्त अपने वक्त पर ही चल रहा है ।
                     👉@संदीप  कुशवाहा 

(7)..........

गजल........

न जाने की हमसे खता क्या हुई है?
बतादो की हमसे ये क्या बेरुखी है?

जो कहते है वो हम भी करते है वेशक।
वो कहते है फिर क्यों सही ये नही है?

वो अपनी ही नस्लो की तारीफ करते।
हमारे हुनर में हुनर की कमी है।

हो बारिश कि उपवन से क्यों बेबफाई?
जो बारिश से उपवन के दिल में नमी है।

वो कोशिश ये करते रहूँ न खबर में।
खबर मे नही हैं नजर तो यहीं है।
     
 👉@संदीप कुशवाहा


(8)..........

गजल..

लेते हो जो भी फैंसले तो सख्त(दृढ़)तो रहे।
गर की है कभी भी खता तो अश्क(आंसू)तो रहे।

हासिल तो हुई शोहरते तुमको यहाँ बहोत।
पर मां के लिए व्यक्ति को अब वक्त तो रहे।1।

दी है इस शहर ने तुझे बदनांमिया मगर।
किस्से से तेरे वाकिफ हर शख्स तो रहे।2।

तू तो है खुदा तुझसे गर कोई खता न हो।
गर इन्सां है तो तुझमे कोई नुक्स(कमी)तो रहे।3।

हम तो चाहते है कि हर कोई लिखे गजल।
सच्चाई से अब रूबरू हर शख्स तो रहे।4।

👉@संदीप कुशवाहा 

(9)............


हाल अपने दिलो का सुना दीजिए।
दुश्मनो को कभी तो दुआ दीजिए।।

अपनी मंजिल से गर कोई गुमराह हो,
राह उसके सफर की बता दीजिए।

थक के हारा कोई गर मिले राह पर,
उसको चलने का फिर हौसला दीजिए।

रंजिसे हो पुरानी कहीं दिल मे गर,
शौक से फिर उसे कर विदा दीजिए।

कैद रखिए न कोई परिंदा यहाँ,
सबको उड़ना है कर अब रिहा दीजिए।

नेक हो बस इरादे हमेशा मेरे,
वो रहें खुश हमेशा दुआ दीजिए।

👉@संदीप कुशवाहा,सतना 


:- इस पेज पर लिखी गई गज़लें "संदीप कुशवाहा"  की कलम से हैं।  जो कई पत्र,पत्रिकाओं मे प्रकाशित हो चुकी हैं।







मंगलवार, 21 जनवरी 2020

राहों मे भी मुस्किल है।

राहों मे भी मुस्किल है और
चाहत भी कुछ कम नही।
चल उठ जा राही चल दे तू
तुझे चलना भी अभी कम नही।
है कठिन राह हैं कांटे भी
तेरी मंजिल की राहों मे।
राहों मे चुभन गर होती है
बदलाव न करना चाहों मे।
जेठ माॅस की गर्मी मे
उस पंछी का साहस देखो।
स्वाति नक्षत्र की बूंदो का
उसके दिल में लालस देखो।
भ्रमित न होता है क्षण भर
इक आश लिए वह जीता है।
जब नक्षत्र स्वाति का आता है
तब ही पानी वह पीता है।
उस नादान परिंदे मे
कितनी कर्मठता है देखो।
अपने कर्मो के प्रति उसमे
कितनी झटपटता है देखो।
तू तो फिर भी मानव है
तेरी बुध्दि प्रबल है इस जग मे।
तू सोच सके तू समझ सके
तू सबसे सबल है इस जग मे।
उस साधारण से पंछी का
तुझसे कोई तुलना कर जाये।
इससे अच्छा तो ये है कि
बिन मौत यहां तू मर जाये।
तुझको गर लाज बचानी है
तू चल चाहत की राहों मे।
जो दिल कहता तू करता जा
अब बढ़ राहत की बाहों  मे।
           👉@संदीप कुशवाहा
मो नं.-7509282272

शनिवार, 7 दिसंबर 2019

मुक्तक...

मुक्तक..

दिलो में दर्द उठता है तो नगमा लिख ही जाता है।
न हो गर प्यार वसुधा से तो जालिम बिक ही जाता है।
कोई कितनी भी करले कोशिशे बदनाम करने की।
कभी सच से न हो परदा कि वो तो दिख ही जाता है
@संदीप कुशवाहा

शनिवार, 16 नवंबर 2019

मुक्तक....

मुक्तक.....

किसे आरोप दे दे हम कहां विश्वास कर ले हम।
शियाशी लोग है इनसे भला क्यूं आश कर ले हम।
यहां केवल ये अपनी रोटियां ही सेंकते रहते।
हमे अक्सर मिला धोखा तो क्यों विश्वास कर ले हम।
                                 
                                 👉@संदीप कुशवाहा

उसे रुतबा नही है कुछ मगर फरमा रहा है वो।
हमे मालूम है सब कुछ मगर भरमा रहा है वो।
हमे नीचा दिखाने के प्रयासो मे रहे हरदम।
मगर जब हो विफलता तो बहुत सरमा रहा है वो।

                                  👉@संदीप कुशवाहा