------: गज़लें :------
(1)
जो भी मौसम मेरे पास आता रहा ।
गीत लिखकर उसे गुनगुनाता रहा ।।
जो समझदार था मुझको समझा नहीं।
जो था नादान अपना बनाता रहा ।।
हर परिंदा ये चाहे वो घर में रहे।
मौसमों का ख़लल उसपे आता रहा।।
गौर मैंने किया ही नहीं यार पर।
वो मुझे हर घड़ी आजमाता रहा।।
नींद आई नहीं जब मुझे रात भर।
जागकर नींद को मै सुलाता रहा।।
👉@संदीप कुशवाहा, सतना
(2).......
जहां कम है मेरा जाना न जिनके पास होता हूं।
उन्हीं की महफिलों में मैं उठी इक बात होता हूं।
खफा होते रहो मुझसे मुझे आदत है अब इसकी,
मोहब्बत से कोई बोले तो मैं हैरान होता हूं।
मेरी मुश्किल मे हैं वो साथ, है उनकी मेहरबानी,
मै जब मुश्किल मे होता हूं तो खुद के साथ होता हूं।
वो हम को जानते तो हैं मगर अनजान रहते हैं ,
मै जबकी हर बखत उनको जुबानी याद होता हूं।
जहां उनको बताना चाहिए था नाम मेंरा भी,
न जाने फिर भला क्यूं मैं वहां गुमनाम होता हूं।
करी कोशिश जो अब हमने बड़ा पाने की चाहत में ,
वो पाना लाज़मी तो है जरा गुमराह होता हूं।
मेरा जो आशियाना है जरा छोटा सा है साहब ,
मगर उस आशियाने का मै शाही शाह होता हूं।
👉@संदीप कुशवाहा, सतना
(3)......
अच्छा लगता है कोई तो कहना पड़ता है ।
कुछ दिन फिर उसकी गलियों में चलना पड़ता है ।
यूं हीं कुछ हांसिल हो जाना किस्मत है वरना,
कुछ करने की खातिर कुछ तो करना पड़ता है।
माना की सूरज हो, तो फिर चमकोगे लेकिन
उगते सूरज को भी इक पल ढ़लना पड़ता है ।
मज़लूमों को रोने से कुछ हांसिल ना होगा,
जुल्मों से अब लड़ना सीखो लड़ना पड़ता है ।
पूंछे जब माँ हालत मेरी कैसा है? तू तब,
अच्छा हूँ माँ अच्छा हूँ ये कहना पड़ता है ।
क्यूं? खुश होगा बंजारा इस मुश्किल जीवन से,
सड़कों पर रहना कब अच्छा, रहना पड़ता है ।
क्या? होगा इस दुनिया का अब तो डरता हूं मैं,
मां को ही बच्चों से अपने डरना पड़ता है।
झूठी बातें बिकती हैं अब महफिल में लेकिन,
शायर हो सच कहना सीखो कहना पड़ता है ।
👉@संदीप कुशवाहा, सतना
(4).......
है चाहतों का क्या शिल-शिला ये, हमें जरा भी खबर नहीं है ।
तु एक पल भी जुदा न होना, हमे जरा भी सबर नहीं है ।
कोई जो सोचे हमीं हैं सब कुछ, तो जान ले वो नहीं है मुमकिन।
यही रखोगे जो तुम नजरिया, तो फिर ये साहब नजर नहीं है ।
हैं लोग कितने भी इस जहां में, जो चाहते ही नहीं हैं हमको ।
करें बगावत वो पीठ पीछे, हमें जरा भी असर नहीं है।
जो चंद शोहरत की ख्वाहिशो में, जहां न करना हो करते सजदा।
जमीर मेरा मुझे पुकारे, कि तुझमे ऐसा हुनर नहीं है ।
थका हुआ हो कोई मुसाफिर, पनाह देता है ये खुशी से।
जो छांव देता है भेद करके, ये कोई ऐसा शजर नहीं है ।
कोई तेरी गर कमी बताए,तो यार उसपे तू गौर करले ।
जरा-सी बातों मे ही खफा हो, ये कोई ऐसा जिगर नहीं है ।
कोई कहे की थे इश्क में तुम, इसी लिए तो हुए हो शायर।
कोई बता दो रे इस जहां को, ये इश्क वाला सफर नहीं है ।
👉@संदीप कुशवाहा, सतना (मध्यप्रदेश )
(5).....
खुद कि खुद से हुई गर मुलाकात है,
तब ये समझो की बस ये करामात है।
फर्ज अपने अदा करता रहता हूं मैं,
क्या खबर कब तलक जिन्दगी साथ है ।
जिन्दगी में मिले जो भी दिन रैन हैं,
उनको जीना पड़ेगा ये सच बात है ।
हँस रहा है बहुत वो हमें देखकर ,
क्या करे वो यही उसकी औकात है ।
दर्द पीता रहा बस यही सोच कर,
दी हुई जिन्दगी की ये सौगात है ।
👉@संदीप कुशवाहा
(6)..........
अब यहां पर वक्त ऐसा चल रहा है ।
आदमी ही आदमी से डर रहा है ।
गांव में साधन की कमिंयां कहने वाला ।
गांव की ही गोद में आ पल रहा है ।
है सहारा देश अपना अपनी माटी ।
तू विदेशो की तरफ क्यों ढल रहा है ।
भ्रम मे है गर तू की तुझसा है ना कोई ।
खुद को खुद से ही यहां तू छल रहा है ।
है कमी तुझमें तू ये स्वीकार कर ले।
वक्त अपने वक्त पर ही चल रहा है ।
👉@संदीप कुशवाहा
(7)..........
गजल........
न जाने की हमसे खता क्या हुई है?
बतादो की हमसे ये क्या बेरुखी है?
जो कहते है वो हम भी करते है वेशक।
वो कहते है फिर क्यों सही ये नही है?
वो अपनी ही नस्लो की तारीफ करते।
हमारे हुनर में हुनर की कमी है।
हो बारिश कि उपवन से क्यों बेबफाई?
जो बारिश से उपवन के दिल में नमी है।
वो कोशिश ये करते रहूँ न खबर में।
खबर मे नही हैं नजर तो यहीं है।
👉@संदीप कुशवाहा
(8)..........
गजल..
लेते हो जो भी फैंसले तो सख्त(दृढ़)तो रहे।
गर की है कभी भी खता तो अश्क(आंसू)तो रहे।
हासिल तो हुई शोहरते तुमको यहाँ बहोत।
पर मां के लिए व्यक्ति को अब वक्त तो रहे।1।
दी है इस शहर ने तुझे बदनांमिया मगर।
किस्से से तेरे वाकिफ हर शख्स तो रहे।2।
तू तो है खुदा तुझसे गर कोई खता न हो।
गर इन्सां है तो तुझमे कोई नुक्स(कमी)तो रहे।3।
हम तो चाहते है कि हर कोई लिखे गजल।
सच्चाई से अब रूबरू हर शख्स तो रहे।4।
👉@संदीप कुशवाहा
(9)............
हाल अपने दिलो का सुना दीजिए।
दुश्मनो को कभी तो दुआ दीजिए।।
अपनी मंजिल से गर कोई गुमराह हो,
राह उसके सफर की बता दीजिए।
थक के हारा कोई गर मिले राह पर,
उसको चलने का फिर हौसला दीजिए।
रंजिसे हो पुरानी कहीं दिल मे गर,
शौक से फिर उसे कर विदा दीजिए।
कैद रखिए न कोई परिंदा यहाँ,
सबको उड़ना है कर अब रिहा दीजिए।
नेक हो बस इरादे हमेशा मेरे,
वो रहें खुश हमेशा दुआ दीजिए।
👉@संदीप कुशवाहा,सतना
:- इस पेज पर लिखी गई गज़लें "संदीप कुशवाहा" की कलम से हैं। जो कई पत्र,पत्रिकाओं मे प्रकाशित हो चुकी हैं।