मंगलवार, 21 जनवरी 2020

राहों मे भी मुस्किल है।

राहों मे भी मुस्किल है और
चाहत भी कुछ कम नही।
चल उठ जा राही चल दे तू
तुझे चलना भी अभी कम नही।
है कठिन राह हैं कांटे भी
तेरी मंजिल की राहों मे।
राहों मे चुभन गर होती है
बदलाव न करना चाहों मे।
जेठ माॅस की गर्मी मे
उस पंछी का साहस देखो।
स्वाति नक्षत्र की बूंदो का
उसके दिल में लालस देखो।
भ्रमित न होता है क्षण भर
इक आश लिए वह जीता है।
जब नक्षत्र स्वाति का आता है
तब ही पानी वह पीता है।
उस नादान परिंदे मे
कितनी कर्मठता है देखो।
अपने कर्मो के प्रति उसमे
कितनी झटपटता है देखो।
तू तो फिर भी मानव है
तेरी बुध्दि प्रबल है इस जग मे।
तू सोच सके तू समझ सके
तू सबसे सबल है इस जग मे।
उस साधारण से पंछी का
तुझसे कोई तुलना कर जाये।
इससे अच्छा तो ये है कि
बिन मौत यहां तू मर जाये।
तुझको गर लाज बचानी है
तू चल चाहत की राहों मे।
जो दिल कहता तू करता जा
अब बढ़ राहत की बाहों  मे।
           👉@संदीप कुशवाहा
मो नं.-7509282272

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